देवघर में नहीं होता रावण दहन, होती है उसकी पूजा: बैद्यनाथ धाम
झारखंड के देवघर में दशहरा का त्योहार एक अनोखी परंपरा के साथ मनाया जाता है। यहाँ रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि उनकी पूजा और सम्मान किया जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने बाबा बैद्यनाथ धाम की स्थापना की थी। इस विशेष परंपरा के कारण, देवघर में दशहरा न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि रावण की भक्ति और बैद्यनाथ धाम के इतिहास को भी जीवंत रखता है।
बैद्यनाथ मंदिर में रावण पूजा की परंपरा
देवघर के बैद्यनाथ मंदिर में दशहरे पर एक विशिष्ट पूजा पद्धति अपनाई जाती है। श्रद्धालु पूजा से पहले ‘श्रीश्री 108 रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ’ मंत्र का उच्चारण करते हैं। यहाँ की परंपरा के अनुसार, पहले रावण और फिर बैद्यनाथ की पूजा की जाती है।
- रावण को शिव का परम भक्त माना जाता है
- बैद्यनाथ धाम की स्थापना रावण की भक्ति से जुड़ी है
- दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता
- स्थानीय लोग रावण को सम्मान देते हैं
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
बैद्यनाथ मंदिर के पूर्व सरदार पंडा भवप्रीता नंद ओझा ने रावण की महिमा पर देवघरिया भाषा में एक झूमर लिखा था। यह झूमर आज भी स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर के रूप में गाया जाता है, जो इस अनूठी परंपरा को जीवंत रखने में मदद करता है।
दशहरे का बदला हुआ स्वरूप
जीवित पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री दुर्लभ मिश्र के अनुसार, देवघर का धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व रावण से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस कारण, यहाँ दशहरे पर न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही उनकी बुराई का प्रदर्शन किया जाता है। देवघर और आसपास के क्षेत्रों में रावण को सम्मान देने की यह विशेष परंपरा आज भी जीवंत है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाती है।
स्रोत: लिंक