Skip to content

बिहार चुनाव सर्वेक्षण: पारंपरिक वोटिंग पैटर्न बरकरार

  • Sushant 
  • Bihar
1 min read

बिहार चुनाव सर्वेक्षण: पारंपरिक वोटिंग पैटर्न बरकरार

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक नए सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है। जातीय गणित, गठबंधन और कल्याणकारी योजनाएं अभी भी मतदाताओं के फैसले को प्रभावित कर रही हैं। हालांकि, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP) ने चुनावी माहौल में कुछ अनिश्चितता पैदा की है। सर्वेक्षण से यह भी स्पष्ट होता है कि बिहार का राजनीतिक परिदृश्य अभी भी महागठबंधन और एनडीए के बीच बंटा हुआ है, जबकि पारंपरिक वोट बैंक अपनी जगह पर मजबूत दिखाई दे रहे हैं।

मुस्लिम और दलित मतदाताओं का रुझान

सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की लगभग 17% मुस्लिम आबादी परंपरागत रूप से महागठबंधन के साथ रही है। 2020 में 75% मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिला था, जो 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़कर 83% हो गया। हालांकि, मुस्लिम समुदाय में कुछ असंतोष भी देखा गया है।

  • मुस्लिम समुदाय टिकट बंटवारे में बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रहा है
  • उपमुख्यमंत्री पद की भी मांग की जा रही है
  • प्रशांत किशोर की पार्टी पर भाजपा का प्रॉक्सी होने का संदेह

दलित समुदाय, जो बिहार की आबादी का लगभग 20% है, में एनडीए का प्रभाव मजबूत माना जा रहा है। पासवान और मुसहर समुदाय एनडीए के साथ दिखाई देते हैं, जबकि चमार समुदाय महागठबंधन की ओर झुकाव रखता है।

पिछड़े वर्गों का मतदान पैटर्न

अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), जो राज्य की 26% आबादी है, अब तक एनडीए के साथ रहा है। वहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की 25% आबादी में यादव समुदाय राजद के साथ है, जबकि गैर-यादव ओबीसी मतदाता एनडीए की ओर झुकाव रखते हैं।

See also  राष्ट्रीय सेवा योजना: युवाओं में व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण

क्षेत्रीय प्रभाव और पिछले चुनाव के परिणाम

सर्वेक्षण से पता चलता है कि महागठबंधन को मगध और भोजपुर में सीटों का नुकसान हो सकता है, जबकि पूर्णिया में कुछ बढ़त मिलने की संभावना है। 2020 के विधानसभा चुनाव में, एनडीए ने 125 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। यह नया सर्वेक्षण इंगित करता है कि आने वाले चुनाव में भी इसी तरह का परिणाम देखने को मिल सकता है।

स्रोत: लिंक