लालू के वो ‘हनुमान’, जिनकी 1 राय ने 8 साल तक नीतीश
1990 के दशक में बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया। कांग्रेस के लंबे शासन के बाद लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ, जिन्हें दबे-कुचले वर्ग का मसीहा माना जाता था। 1990 में मुख्यमंत्री बने लालू ने 1995 के चुनाव में भी बहुमत हासिल किया। लेकिन चारा घोटाले के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा। विपक्ष को लगा कि लालू युग का अंत हो गया है, पर उनके करीबी राधानंदन झा ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए। इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी और सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया।
लालू यादव का उदय और प्रभाव
1990 के दशक में बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का उदय एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। वे दबे-कुचले वर्ग के लोगों के लिए एक आशा की किरण बनकर उभरे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि:
- 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बने
- 1995 के विधानसभा चुनाव में भी बहुमत हासिल किया
- संयुक्त बिहार में मजबूत सरकार बनाई
- पिछड़े वर्गों के बीच लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हुए
चारा घोटाला और राजनीतिक संकट
लालू यादव के राजनीतिक करियर में चारा घोटाला एक बड़ा धक्का साबित हुआ। इस घोटाले के सामने आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस घटना ने बिहार की राजनीति को हिलाकर रख दिया। विपक्षी दलों को लगा कि अब लालू युग का अंत हो गया है।
राधानंदन झा की रणनीति और नए राजनीतिक समीकरण
जब सभी को लग रहा था कि लालू यादव का राजनीतिक करियर खत्म हो गया है, तब उनके करीबी राधानंदन झा ने एक चतुर रणनीति अपनाई। झा ने ऐसे राजनीतिक समीकरण बनाए जिसने पूरी स्थिति को बदल दिया। इस कदम ने न केवल लालू यादव को राजनीतिक रूप से बचाया, बल्कि बिहार की राजनीति को एक नई दिशा भी दी। यह घटनाक्रम बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसने आने वाले वर्षों में राज्य की राजनीति को प्रभावित किया।
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