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भारत में एक-चौथाई वर्क फोर्स महिलाएं: लेकिन मैनेजर लेवल पर सिर्फ 8%

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भारत में एक-चौथाई वर्क फोर्स महिलाएं: लेकिन मैनेजर लेवल पर सिर्फ 8%

भारत के कार्यस्थलों में महिलाओं, दिव्यांगों और LGBTQIA+ समुदाय की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। 'ग्रेट प्लेस टू वर्क' की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों से कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 26% पर स्थिर है। वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की संख्या और भी कम है। दिव्यांगों और LGBTQIA+ व्यक्तियों के लिए कार्यस्थल अभी भी पूरी तरह समावेशी नहीं हैं। यह स्थिति भारतीय कार्यस्थलों में विविधता और समानता की कमी को दर्शाती है। महिलाओं की भागीदारी और चुनौतियाँ रिपोर्ट में महिलाओं की कम भागीदारी के कई कारण सामने आए हैं: बच्चे होने के बाद काम छोड़ने की मजबूरी मध्यम और वरिष्ठ स्तर पर अवसरों की कमी कार्य-जीवन संतुलन की चुनौतियाँ इन कारणों से महिलाओं का करियर विकास प्रभावित होता

महिलाओं की भागीदारी और चुनौतियाँ

रिपोर्ट में महिलाओं की कम भागीदारी के कई कारण सामने आए हैं:

  • बच्चे होने के बाद काम छोड़ने की मजबूरी
  • मध्यम और वरिष्ठ स्तर पर अवसरों की कमी
  • कार्य-जीवन संतुलन की चुनौतियाँ

इन कारणों से महिलाओं का करियर विकास प्रभावित होता है और वे उच्च पदों तक नहीं पहुँच पाती हैं।

दिव्यांगों और LGBTQIA+ समुदाय की स्थिति

भारतीय कार्यस्थलों में दिव्यांग व्यक्तियों की जरूरतों का पूरा ध्यान नहीं रखा जाता। केवल आधी कंपनियों में ही दिव्यांगों के लिए उचित तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। LGBTQIA+ समुदाय के लिए भी स्थिति बेहतर नहीं है।

समावेशी नीतियों की आवश्यकता

इंडियन वर्कप्लेस इक्वालिटी इंडेक्स 2024 के अनुसार, केवल 45% भारतीय कंपनियों में भेदभाव-विरोधी नीतियाँ हैं। वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों में यह आँकड़ा 85% है। यह अंतर दर्शाता है कि भारतीय कंपनियों को समावेशी कार्य संस्कृति विकसित करने की दिशा में और प्रयास करने की आवश्यकता है। विविधता और समानता को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

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यह जानकारी आधिकारिक/विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है और पाठकों के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत की गई है।

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