देवघर में नहीं होता रावण दहन, होती है उसकी पूजा: बैद्यनाथ धाम
देवघर में दशहरा का त्योहार एक अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है। यहाँ रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि उनकी पूजा होती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण ने अपनी भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न किया था, जिसके फलस्वरूप बाबा बैद्यनाथ धाम की स्थापना हुई। इस विशेष परंपरा में, श्रद्धालु पहले रावण और फिर बैद्यनाथ की पूजा करते हैं। यह परंपरा देवघर के धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो रावण की भक्ति और बैद्यनाथ धाम की स्थापना की कहानी को जीवंत रखती है।
रावण पूजा की विशिष्ट प्रथा
देवघर में दशहरे पर रावण की पूजा एक अद्वितीय परंपरा है। बैद्यनाथ मंदिर में श्रद्धालु पूजा से पहले ‘श्रीश्री 108 रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ’ मंत्र का उच्चारण करते हैं। यह प्रथा रावण के प्रति सम्मान और उनकी भक्ति को दर्शाती है।
- रावण दहन नहीं होता
- पहले रावण, फिर बैद्यनाथ की पूजा
- विशेष मंत्र का उच्चारण
- रावण की बुराई का प्रदर्शन नहीं
सांस्कृतिक महत्व
बैद्यनाथ मंदिर के तत्कालीन सरदार पंडा भवप्रीता नंद ओझा ने रावण की महिमा पर देवघरिया भाषा में एक झूमर लिखा था। यह रचना आज भी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में गाई जाती है, जो इस परंपरा के गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाती है।
परंपरा का महत्व और निरंतरता
जीवित पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री दुर्लभ मिश्र के अनुसार, देवघर का धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व रावण से गहराई से जुड़ा है। यह परंपरा न केवल देवघर में, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी जीवित है। यहाँ दशहरा केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व नहीं है, बल्कि रावण की भक्ति और बैद्यनाथ धाम की स्थापना की कहानी को जीवंत रखने का प्रतीक भी है।
यह जानकारी आधिकारिक/विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है और पाठकों के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत की गई है।
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