मां महामाया मंदिर में नवरात्र का उत्सव: रामानुजगंज में श्रद्धालुओं
रामानुजगंज में कन्हर नदी के तट पर स्थित मां महामाया मंदिर में शारदीय नवरात्र का उत्सव शुरू हो गया है। पहले दिन से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मंदिर में उमड़ रही है। 1935 में स्थापित यह मंदिर क्षेत्र का एकमात्र देवी मंदिर था। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना जरूर पूरी होती है। मंदिर में पूजा की परंपरा तीन पीढ़ियों से चल रही है। नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए यहां आ रहे हैं, जो मंदिर की लोकप्रियता और महत्व को दर्शाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
मां महामाया मंदिर का इतिहास लगभग 90 वर्ष पुराना है। सरगुजा स्टेट के महाराज रामानुज शरण सिंह देव ने 1935 में इस मंदिर की स्थापना की थी। उस समय यह इलाके का एकमात्र देवी मंदिर था, जो इसके धार्मिक महत्व को दर्शाता है। मंदिर में पूजा की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है:
- स्वर्गीय केदारनाथ पांडे ने चार दशकों तक पूजा की
- उनके बाद उनके पुत्र नंदलाल पांडे ने जिम्मेदारी संभाली
- वर्तमान में पोते जितेंद्र पांडे पूजा कार्य कर रहे हैं
मंदिर परिसर की विशेषताएं
महामाया मंदिर परिसर में कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं। इनमें शीतला माता, काली माता, संतोषी माता, दक्षिणमुखी हनुमान, माता सती और शंकर जी के मंदिर शामिल हैं। मंदिर में महामाया मां की सिद्ध पीठ स्थापित है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है। नगर पालिका अध्यक्ष रमन अग्रवाल ने मंदिर में गुंबज निर्माण और अन्य विकास कार्य करवाए हैं।
नवरात्रि उत्सव और श्रद्धालुओं का आकर्षण
शारदीय नवरात्र के दौरान मां महामाया मंदिर में विशेष धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। इस दौरान न केवल स्थानीय श्रद्धालु बल्कि अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है, जो मंदिर की आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है। नवरात्रि के पहले दिन से ही मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है, जो इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है।
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