भारत में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण: चुनौतियाँ और समाधान
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। हर साल देश में लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 9% रीसाइकल किया जाता है। यह प्रदूषण पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है। सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जागरूकता, बेहतर कचरा प्रबंधन और वैकल्पिक सामग्री के उपयोग से इस समस्या से निपटा जा सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव भारत में प्लास्टिक प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। यह न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन गया है। प्लास्टिक कचरे के कारण: नदियाँ और समुद्र प्रदूषित हो
प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। यह न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन गया है। प्लास्टिक कचरे के कारण:
- नदियाँ और समुद्र प्रदूषित हो रहे हैं
- जानवरों की मृत्यु हो रही है
- मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है
- खाद्य श्रृंखला में माइक्रोप्लास्टिक प्रवेश कर रहा है
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत लगभग 11 किलोग्राम प्रति वर्ष है। इसमें से अधिकांश कचरा लैंडफिल में जमा हो जाता है या जला दिया जाता है, जो वायु प्रदूषण का कारण बनता है।
सरकारी प्रयास और चुनौतियाँ
भारत सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। छोटे व्यवसायों और गरीब लोगों पर इसका आर्थिक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, वैकल्पिक सामग्री की उपलब्धता और लागत भी एक बड़ी समस्या है। कई राज्यों में नियमों का पालन सही तरह से नहीं हो रहा है।
समाधान और भविष्य की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें शामिल हैं:
- जन जागरूकता अभियान चलाना
- रीसाइक्लिंग और कचरा प्रबंधन में सुधार
- बायोडिग्रेडेबल विकल्पों को बढ़ावा देना
- उत्पादक जिम्मेदारी को लागू करना
कई स्टार्टअप्स और कंपनियाँ पर्यावरण अनुकूल पैकेजिंग पर काम कर रही हैं। सरकार भी प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए नए नियम और
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